*न्यू वर्ल्ड ऑर्डर*
किसी एक देश की चौधराहट में दुनिया चलती है। लम्बे समय तक यह सरपंची यूरोप और खासकर इंग्लैंड के पास रही। अन्य यूरोपीय देश इसमें बराबरी से या दरबारी के रूप में सम्मिलित रहे।
द्वितीय विश्वयुद्ध से व्यवस्था छिन्न भिन्न हुई, तब जापान और अमेरिका ने खम ठोका। उधर रशियन भी पैर पसारने लगे। खेमाबंदी होने लगी। जापान पर परमाणु हमला हुआ तो उसने चौधराहट की दौड़ से खुद को अलग करके कठिन परिश्रम से स्वयं को सक्षम बनाया और अग्रिम पंक्ति में रहा।
सोवियत संघ के पतन के साथ चौधराहट अमेरिका की ओर घूम गई। यूरोप उसका सहयोगी बना रहा। अमेरिका ने उन्नति के समानान्तर दुनियाभर के टैलेंट को खींचना शुरू किया। आधुनिकता, चमक और प्रचुर आमदनी से टैलेंट भी अमेरिका का रुख करने लगा। जनसंख्या की दृष्टि से चीन और भारत सबसे बड़े देश थे तो सबसे ज्यादा टैलेंट भी यहीं से गया। परदेश में शुरुआत में अच्छा लगता है। फिर कुछ अपमानजनक परिस्थिति घटित होने पर देश की सुध आती है इस प्रकार चीन और भारत अपने देश को आगे लाना चाहने लगे। संसार के कई देश मानने भी लगे कि इक्कीसवीं सदी एशिया की होगी। *पारिवारिक और निजी स्वार्थ की राजनैतिक परिस्थितियों में भारत की गति धीमी रही।* यहाँ किसी चमत्कारिक नेता की तलाश थी जो विश्वमंच पर दमदारी से भारत का पक्ष रखे अन्य विश्व नेताओं से बराबरी की टक्कर ले। चीन आगे बढ़ता जा रहा था और भारत को जब ऐसा व्यक्तित्व मिला तबतक चीन बहुत आगे जा चुका था। चीन की कुटिलता ने उसे विश्वसनीय नहीं बनने दिया और नये नैतृत्व के साथ भारत पूरी तरह दौड़ में आ चुका था, अक एशिया की सदी भारत की सदी बनने लगी। तभी चीन से कोविड-19 का प्रसार हुआ(या किया गया) और वैश्विक तानाबाना चरमरा गया। भारत धैर्य और कुशलता से इस विकट परिस्थिति से निपटता रहा और विश्व की सहायता भी करता रहा। कोविड से चीन के प्रति शंकाएं बढ़ती गई। *अब भारत ही दमदार
दिखने लगा। भारत के प्रधानमंत्री संकटों में से राह निकालकर उन्नति के अवसर ढूंढने के अभ्यस्त हैं। गुजरात में विश्व के सबसे भयानक भूकंप, चक्रवात, प्लेग और दंगों से निपटने के अनुभव ने उन्हें बहुत सक्षम बना दिया।*
नये परिदृश्य में विश्व भारत से अपेक्षा कर रहा है कि भारत चौधरी बने। विश्व के प्रति भारत की नीयत और नीति दोनों साफ हैं। विश्व कूटनीतिक स्वार्थों से उबकर वसुधैव कुटुम्बकम वाले भारत को ड्राइविंग सीट पर देखना चाहता है।
*किन्तु भारत में ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने यूरोप-अमेरिका के कूटमार्ग में अपने स्वार्थ के ठिये बना लिए थे, वे पुरानी व्यवस्था को उजड़ते नहीं देखना चाहते, इसलिए बिना विकल्प का विरोध और बिना समाधान के समस्या उठाते रहते हैं। यदि देशवासियों का सहयोग रहा तो "न्यू वर्ल्ड ऑर्डर" में मुख्य भूमिका भारत की होगी।*